स्मार्टनेस किताबों से नहीं आती: एक दृष्टिकोण” by Dr. Vikas Divyakirti | Smartness Doesn’t Come from Books by Dr. Vikas Divyakirti. इस ब्लॉग में, डॉ. विकास दिव्यकीर्ति द्वारा लिखा गया है कि स्मार्टनेस किताबों से नहीं आती। यहां उन्होंने अपने दृष्टिकोण के माध्यम से बताया है कि ज्ञान का असली मायना केवल किताबों से ही नहीं आता। Dr. Vikas Divyakirti discusses that smartness doesn’t come from books. Through his perspective, he explains that true knowledge doesn’t solely come from books.
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इस भाषण में विकास दिव्यकीर्ति ने दो प्रकार के छात्रों की तुलना करते हुए एक महत्वपूर्ण संदेश साझा किया है। पहला छात्र अपनी शैक्षणिक उत्कृष्टता और अनुशासन के कारण हमेशा शीर्ष स्थान पर रहता है। उसकी बुद्धिमत्ता (आईक्यू) बहुत उच्च है, और वह सभी परीक्षाओं में टॉप करता है। उसकी मां का दुलारा है और उसकी हर बात का पालन करता है। उसके मेहनत और लगन की वजह से उसे गूगल जैसी प्रतिष्ठित कंपनी में नौकरी मिल जाती है, जिसमें उसे शानदार वेतन मिलता है। हालांकि, यह छात्र सामाजिक इंटरैक्शन और भावनात्मक बुद्धिमत्ता (ईआई) में कमजोर है। वह दूसरों से बातचीत करने में संकोच करता है और सामाजिक परिस्थितियों में असहज महसूस करता है।
इसके विपरीत, दूसरा छात्र, जो बहुत ज्यादा पढ़ाई में समय नहीं लगाता और जीवन का आनंद लेता है, उसे एक साधारण नौकरी मिलती है। उसका वेतन भी पहले छात्र की तुलना में बहुत कम होता है। लेकिन उसकी ताकत उसकी उच्च भावनात्मक बुद्धिमत्ता में निहित है। वह सामाजिक रूप से कुशल है, लोगों से अच्छी तरह से जुड़ता है और हर परिस्थिति को सहजता से संभालता है। वह सामाजिक समारोहों में भाग लेता है, नृत्य करता है और खुशी-खुशी जीवन जीता है।
विकास दिव्यकीर्ति इस कहानी का उपयोग, जो डैनियल गोलमैन के सिद्धांतों पर आधारित है, यह दिखाने के लिए करते हैं कि दीर्घकालिक सफलता केवल आईक्यू पर निर्भर नहीं करती, बल्कि ईआई भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। वे समझाते हैं कि आईक्यू हमें परीक्षा पास करने और नौकरियां प्राप्त करने में मदद कर सकता है, लेकिन करियर में उन्नति और व्यक्तिगत विकास के लिए ईआई महत्वपूर्ण है। भावनात्मक बुद्धिमत्ता वह क्षमता है जो हमें अपने और दूसरों की भावनाओं को समझने, प्रबंधित करने और उनका सही ढंग से उपयोग करने में मदद करती है।
दिव्यकीर्ति बताते हैं कि ईआई का विकास एक सतत प्रक्रिया है जो लगातार अभ्यास और जीवन के अनुभवों से आता है। यह केवल किताबें पढ़कर या सैद्धांतिक ज्ञान से नहीं सीखा जा सकता। यह एक ऐसा गुण है जिसे व्यवहार में उतारने के लिए बार-बार अभ्यास की आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, किसी सामाजिक कार्यक्रम में भाग लेने और लोगों से बातचीत करने का अभ्यास करने से ही सामाजिक कौशल विकसित होते हैं। यह भी उतना ही कठिन हो सकता है जितना कि सद्गुणी बनने के लिए सुकरात द्वारा सुझाई गई मेहनत।
दिव्यकीर्ति यह भी बताते हैं कि भावनात्मक बुद्धिमत्ता कैसे कार्यस्थल में सफलता को प्रभावित करती है। पहले छात्र, जिसकी केवल आईक्यू पर निर्भरता है, को अपनी नौकरी में आगे बढ़ने में कठिनाई होती है। वह अपने साथियों के साथ बातचीत करने में असमर्थ होता है और उसकी सामाजिक असहजता उसके करियर में बाधा बनती है। दूसरी ओर, दूसरा छात्र, अपनी उच्च ईआई के कारण, कार्यस्थल में लोकप्रिय हो जाता है और तेजी से तरक्की करता है। उसकी सामाजिक कुशलता और आत्मविश्वास उसे नेतृत्व भूमिकाओं के लिए उपयुक्त बनाते हैं।
विकास दिव्यकीर्ति इस कहानी के माध्यम से एक महत्वपूर्ण संदेश देते हैं कि सच्ची सफलता और संतुष्टि के लिए केवल उच्च आईक्यू पर्याप्त नहीं है। हमें अपनी भावनात्मक बुद्धिमत्ता को भी विकसित करने की आवश्यकता है। ईआई हमें बेहतर संवादक, बेहतर नेता और अधिक सहानुभूतिपूर्ण इंसान बनाती है। यह हमें तनाव और चुनौतियों का सामना करने में मदद करती है और हमें एक पूर्ण और संतुलित जीवन जीने में सक्षम बनाती है।
दिव्यकीर्ति का यह भाषण यह समझाने में सफल होता है कि भावनात्मक बुद्धिमत्ता का विकास संभव है, लेकिन इसके लिए निरंतर प्रयास और अभ्यास की आवश्यकता होती है। यह कोई आसान प्रक्रिया नहीं है, लेकिन इसके परिणामस्वरूप जो सफलता और संतुष्टि मिलती है, वह अविस्मरणीय होती है। ईआई को विकसित करने का मतलब है कि हम अपने जीवन को अधिक सकारात्मक, प्रभावी और संतुलित तरीके से जी सकते हैं, जिससे हम न केवल अपने करियर में बल्कि अपने व्यक्तिगत जीवन में भी सफल हो सकते हैं।